शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

आप जो कहते हैं, क्या आप वो करते भी हैं?


हमारे पास दूसरों के लिए बिलकुल ठीक ठीक ज्ञान मौजूद है। जब सलाह देने की बात आएगी तो आप पाएंगे कि कई ऐसे मित्र जिन्हें शायद आप सलाह देने के लायक भी नहीं मानते थे, वो कठिन समय पर आपको वो राह दिखा जाएं जिसके बारे में आप सोच भी न पा रहे हो। आप हर एक के ज्ञान पर विश्वास भी नहीं करते और इस अविश्वास का कारण ये भी हो सकता है कि यदि इसके पास इतना ही ज्ञान होता तो ये खुद परेशान क्यूं रहता है? एक सज्जन दुनिया को तंबाकू के दुष्प्रभावों का लेक्चर देते रहते थे। वो इस पर गहरी रिसर्च कर चुके थे और ये भी जानते थे कि इससे कितने खराब रोग इंसान को हो सकते हैं। उनकी इन बातों से प्रभावित होकर एक साथी ने अपनी तंबाकू की आदत पर लगाम लगाने में कामयाबी भी हासिल कर ली।

एक दिन अचानक सड़क पर हुई मुलाकात में तंबाकू छोड़ने वाले युवा ने पाया कि तंबाकू पर लेक्चर देने वाले सज्जन तो खुद ही उसका सेवन कर रहे थे। वो चकित तो हुआ ही साथ ही खुद को ठगा हुआ भी महसूस करने लगा। लेक्चर देने वाले सज्जन भी सकपका गए। वो जानते थे कि व्यवहारिक जीवन में यदि वो किसी बात पर अमल करते नहीं दिखेंगे तो उनकी बातों का सकारात्मक असर किसी पर नहीं होगा। उन्हें ये बहुत ही लज्जा का विषय लगा और उन्होंने इस पर अपने युवा साथी से बात करने की इच्छा जाहिर की।

वो युवा खुद को इस लिहाज से ठगा हुआ महसूस कर रहा था कि जिस आदत को छोड़ने के लिए वो संघर्ष कर रहा है और काफी हद तक उस पर काबू पा चुका है उससे तो ज्ञान देने वाला खुद ही नहीं उबर पाया। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस आदत को छोड़कर मैं इसके आनंद से वंचित रह गया। हो सकता है ये आदत उतनी बुरी न हो जितनी इस आदमी ने मुझे बताई थी? वो बात तो नहीं करना चाहता था लेकिन इस झटके से उबरने के लिए सफाई लेनी भी जरूरी थी। उसने कहा वैसे तो आपकी हर बात ही अब झूठ लगेगी लेकिन फिर भी कहें क्या इस पर भी कोई ज्ञान दे सकते हैं। ज्ञान देने वाले तो ज्ञान देने वाले होते हैं हर विषय पर कुछ कह सकते हैं सो इन्होंने भी कहा कि मैंने तंबाकू के बारे में आज तक जितनी भी बातें कहीं हैं वो सौ फीसदी सही हैं।

ये भी सच है कि तुम यदि इस पर काबू पा रहे हो तो अपने जीवन को शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर बेहतर कर रहे हो। अब प्रश्न उठता है मेरे खुद इस बात को मानने का तो ये बात स्पष्ट है कि जानने और बताने के स्तर पर तो मैं शायद तुमसे बेहतर था लेकिन आजमाने के स्तर पर तुम ज्यादा बेहतर हो। यही वजह है कि मेरे ज्ञान का लाभ मुझे हो न हो तुम्हें जरूर होगा।

खैर उस शख्स ने इस ज्ञानी की बात को माना या नहीं माना ये एक दूसरी कहानी है लेकिन महत्वपूर्ण बात ये हैं कि हम सभी में एक ज्ञानी छिपा बैठा है। किसी और के लिए हमें ठीक ठीक ज्ञान होता है लेकिन जब बात खुद आजमाने की आती है तो हम कई बार उन लोगों से भी पीछे होते हैं जो हमारे ज्ञान से प्रभावित होते हैं। इसका दूसरा पहलु ये भी है कि दूसरों के दिए ज्ञान को भी हमें गंभीरता से लेना चाहिए। कथनी और करनी का फर्क तो अज्ञानी की ही पहचान है और ऐसे कथित ज्ञानी दरअसल अपने निजी जीवन में अज्ञानी ही हैं। आपका अपना व्यक्तित्व ही किसी अन्य के लिए सच्चा ज्ञान हो सकता है। जब व्यक्तित्व और जीवन से ज्ञान खुद सामने आता है तो वाचक ज्ञान की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। जब ज्ञान क्रियान्वयन में आता है तब सच पूछिए बाहरी ज्ञान की भी आवश्यकता नहीं रह जाती है। किसी और के लिए आपका ज्ञान कितना उपयोगी होगा से ज्यादा महत्वपूर्ण ये जानना है कि आपके भीतर मूल रूप से मौजूद ज्ञान का आप व्यवहारिक जीवन में कितना इस्तेमाल करते हैं।

उदाहरण के लिए हम एक बात सामान्य रूप से जानते और पढ़ते आएं हैं कि सत्य में बड़ी शक्ति है और असत्य में भयानक नकारात्मकता, इसके बावजूद अपने जीवन में हम सच झूठ का इस्तेमाल किस तरह करते हैं? तंबाकू खाना हमारे लिए खतरनाक है ये क्या किसी के द्वारा दिए गए ज्ञान के बाद हमें समझ में आएगा? हद तो तब हो जाती है जब ऐसे खतरनाक उत्पादों पर पहले से ही चेतावनी दे दी जाती है कि ये आपके लिए जानलेवा है। ज्ञान देने से ही यदि बात बन जाती तो ऐसे उत्पादों को खरीदने वाले इन चेतावनियों को गंभीरता से लेते।


हमारे जीवन में ऐसी कई वैधानिक चेतावनियां देखने को मिलती हैं। स्वामी शरणानंद के शब्दों में हम सभी को सही गलत का ठीक ठीक ज्ञान होता है यही वजह है कि जब भी कोई हितकारी बात या सत्य बात कहता है हम उसका समर्थन करते हैं। मोटिवेशनल बातें हमें अच्छी लगती हैं क्यूंकि हमारा मन इन बातों का समर्थन करता है। इस समर्थन से ही स्पष्ट है कि ये ज्ञान हममें मूल रूप से मौजूद है। महत्वपूर्ण कार्य है उन कारणों को ढूंढना जिनकी वजह से हमने इस ज्ञान को कहीं दबा दिया है। ये वजहें भी वहीं ज्ञान और उसके क्रियान्वयन का भेद है जो ऊपर दी गई कहानी में हमने देखा। उस ज्ञानी की जगह जरा खुद को रखिए और देखिए की आप जो कहते हैं उसमें कितनी बातों को सचमुच में अमल में लाते हैं? आप ये भी जानने की कोशिश करिए की क्या आप सचमुच वैसे हैं जैसे दुनिया को दिखाते हैं?  विश्वास करिए इन दो सवालों के ईमानदार जवाब आपकी जिंदगी बदल सकते हैं और फिर शायद आपको कभी किसी बाहरी ज्ञान की आवश्यकता भी न पड़े।

2 टिप्‍पणियां:

  1. sir i always enjoy reading your articles. it was well-written and contained sound, practical advice. In fact, your articles help us realize that our problems are typical, and we can solve them in constructive ways. thanks a lot for sharing them ... 👍🏻☺️☺️

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